शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

शनिवार, 11 जुलाई 2020

तेरे मेरे सपने (1971)

निर्देशकः विजय आनन्द
निर्माताः देवानन्द
अभिनय: देवानन्द, मुमताज, हेमा मालिनी, विजय आनन्द, आगा, राजश्री टी., तबस्सुम, मुमताज बेगम, लीला मिश्रा, सप्रू, दुलारी, प्रेम नाथ
गायन: लता मंगेशकर, आशा भोसले, किशोर कुमार, मन्ना डे
गीत: नीरज
संगीत: एस. डी. बर्मन

इस फिल्म की कहानी ए. जे क्रोनिन के उपन्यास दी सिटाडेल पर आधारित है। फिल्म की कहानी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की समस्या, स्वास्थ्य सेवाओ का व्यवसायिकरण और डाक्टरों की भूमिका है।  फिल्म में मुमताज के साथ देवानन्द, हेमा मालिनी और विजय आनन्द है। फिल्म में देवानन्द और विजय आनन्द दोनों आदर्शवादी डाक्टर है औ हेमा मालिनी एक लोकप्रिय अभिनेत्री भूमिका में है। इतना सब कुछ होने के बाद भी मुमताज ने इस फिल्म में सशक्त और बेहतरीन अभिनय से भारतीय नारी  के लिए एक उत्तम आदर्श प्रस्तुत किया है जो हर सुख-दुख में पति का साथ देती है लेकिन अपने स्वाभिमान और आदर्शों की रक्षा के लिए अपने पति को छोड़ने में संकोच नहीं करती।

फिल्म का आरम्भ डा. आनन्द (देवानन्द) उसके मित्र की बातचीत से होती है। बातचीत से मालूम होता है कि दोनों ने साथ-साथ डाक्टरी की पढ़ाई की है। मित्र आनन्द को समझता है कि गाँव में जाकर डाक्टरी करना, मतलब जीवन बरबाद करना है। इससे कही अच्छा है कि शहर में प्रैक्टिस करके मोटी कमाई की जाए।

आनन्द गाँव में जाकर डा. प्रसाद के साथ गाँववालों की सेवा करने लगता है। अधिकतर गाँव वाले कोयले की खानों में काम करते है। डा. प्रसाद और माइनिंग कम्पनी में गाँववालों के इलाज करने का आपसी समझौता है। डा. जगन्नाथ (विजय आनन्द) भी डा. प्रसाद के साथ काम करते है। वे एक प्रतिभावान स्त्री रोग विशेषज्ञ है लेकिन अब गाँव की समस्याओं से जूझते-जूझते निराशावादी हो गए है। चूंकि डा. प्रसाद कुछ बीमार रहते है इसलिए दोनोे के रहने और खाने का प्रबन्ध मिसेज प्रसाद ही करती है।

गाँव में एक और डाक्टर है, डा. भूटानी (आगा)। वे दाँतों के डाक्टर है। डा. भूटानी प्रसन्नचित्त और मिलनसार व्यक्ति है। डा. जगन्नाथ और डा. भूटानी अक्सर एक साथ मिलकर शराब पीते है।

जल्दी ही आनन्द की मुलाकात निशा से होती है। निशा भी एक आदर्शवादी स्त्री है और गाँव के विद्यालय में गरीब बच्चों को पढ़ाती है। शुरुवाती मत-भेदों के बाद दोनों एक दूसरे को समझने लगते है और उनका मेल-जोल बढ़ने लगता है। डा. भूटानी चाहते है कि दोनों शादी कर ले पर आनन्द अभी शादी की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता।

एक रात दुलारी को प्रसव-पीड़ा होती है और उसे तुरन्त डाक्टर की मदद चाहिए। लेकिन डा. जगन्नाथ शराब पीकर धुत पड़ा है। ऐसी हालत में डा. आनन्द को ही दुलारी का आपरेशन करना पड़ता है। काफी मेहनत के बाद माँ और बच्चा दोनों की जान बच जाती है। फूलचन्द जो बच्चे का पिता है, वह आनन्द को आशीर्वाद के रूप मे आनन्द को 100 रुपये का एक नोट देता है। आनन्द यह सौ रुपये अपनी सेवा का प्रमाण-पत्र समझकर निशा को दे देता है।

अगले दिन जब जगन्नाथ को यह बात बता चलती है तो वह फिर कभी शराब नही पीने की प्रतिज्ञा करता है और अपना काम पूरी ईमानदारी से करने लगता है।

जब मिसेज प्रसाद को यह बात पता चलती है तो वह आनन्द से सौ रुपये माँगती है। आनन्द उन रुपयों पर अपना अधिकार समझता है, क्योंकि उसके काम के लिए कम्पनी डा. प्रसाद को सीधे भुगतान करती है। इस बात पर आनन्द को डा. प्रसाद की नौकरी छोड़नी पड़ती है।

नई नौकरी के लिए शर्त है कि डाक्टर शादीशुदा हो। लगभग मजबूरी में वह निशा से शादी करने का प्रस्ताव करता है। निशा को यह बात पसन्द नहीं कि वह मजूबरी में शादी करे। लेकिन वह फिर भी शादी के लिए तैयार हो जाती है क्योंकि वह जानती है कि अगर कोई मजबूरी न हो तो शायद आनन्द कभी शादी न करे और अपना जीवन गाँव-सेवा में ही लगा दे। यहाँ पर मुमताज पर फिल्माया गया गीत -- जैसे राधा ने माला जपी श्याम की, मैंने ओढ़ी चुनरिया तेरे नाम की बहुत सुन्दर बन पड़ा है और मुमताज भी बहुत सुन्दर लग रही है।

इस फिल्म में मुमताज और देवानन्द पर फिल्माये गए अन्य गीत -- ली मैंने कसम ली और जीवन की बगीया महकेंगी भी सुन्दर है।


शादी के बाद निशा गर्भवती हो जाती है लेकिन एक कार दुर्घटना में गर्भ गिर जाता है। आपरेशन के बाद डा. जगन्नाथ आनन्द को बताता है कि अब दुबारा माँ बनने से निशा की जान को खतरा हो सकता है।

कार खान का मालिक स्वयं चला रहा था। मुकदमा चलता है लेकिन खान का मालिक छूट जाता है। इस घटना के बाद, आनन्द को पैसे कमाने का भूत सवार होता है और गाँव छोड़कर निशा के साथ शहर आकर  प्रैक्टिस शुरु करता है। शुरु में ज्यादा काम न होने के कारण पैसों की तंगी रहती है। फिर भी निशा हमेशा आनन्द को भटकने नहीं देती और आनन्द को एम. डी. करने के लिए कहती है।


एक दिन अभिनेत्री मालतीमाला (हेमा मालिनी) की हेयर ड्रैसर आनन्द से अपना इलाज कराने आती है। आनन्द के फालूत की दवाई लिखने के बजाय उसका सही उपचार करता है। 

फिर जब अगली बार मालतीमाला की तबीयत खराब होती है तो आनन्द को ही बुलाया जाता है। धीरे-धीरे आनन्द और मालतीमाला में मेल-जोल बढ़ने लगता है। ज्यादा पैसा कमाने के धुन और मालतीमाला के कारण में आनन्द और निशा में दूरी बढ़ती जाती है। लेकिन निशा हिम्मत नहीं हारती और हर प्रकार से आनन्द को खुश रखना चाहती है। आनन्द भी निशा को छोड़ना नहीं चाहता, और कुछ समय के लिए निशा के पास आ जाता है।


डा. प्रसाद की मृत्यु के बाद मिसेज प्रसाद के स्वभाव में भी परिवर्तन आता है। वह अपनी सारी जमा-पूंजी से गाँव में एक हस्पताल बनाना चाहती है। जगन्नाथ आनन्द मिलकर उसे वापस गाँव आने के लिए समझता है लेकिन आनन्द नहीं मानता।

कुछ समय बाद दुलारी और फूलचन्द अपने बीमार बच्चे को लेकर डा. आनन्द के पास आते है। आनन्द बच्चे को दूसरे डाक्टर के पास भेज देता है, जहाँ उसकी मृत्यु हो जाती है। इस घटना से निशा के दिल में बड़ी चोट लगती है। उसे समझ आ जाता है कि आनन्द जिस रास्ते पर चल रहा है वहाँ से वापस लौटना बहुत कठिन है। वह एक आखिर कोशिश करती है। वह आनन्द को वह 100 रुपये का नोट, जिसे फूलचन्द ने बच्चे के जन्म पर दिया था, दिखाती है और उसे उसके आदर्श याद दिलाती है। लेकिन आनन्द वापस लौटना नहीं चाहता। आखिर निशा गाँव वापस लौट जाती है।


एक दिन जगन्नाथ आनन्द के पास आकर निशा की नाजुक हालत के बारे में उसे बताता है। जगन्नाथ को यह जानकर आश्चर्य होता है कि साथ-साथ रहने और डाक्टर होने के बावजूद भी आनन्द  को यह भी नही पता चला कि जिस समय  निशा उसे छोड़कर गई थी उस समय वह गर्भवती थी।  अब आनन्द की आँख खुलती है। वह जगन्नाथ के साथ भागा-भागा गाँव पहुँचता।

जगन्नाथ निशा का आपरेशन करता है और निशा और उसके बच्चे दोनों को बचा लेता है।


खिलौना (1970)

निर्देशकः चन्दर वोहरा
निर्माताः एल. वी. प्रसाद
कहानीः गुलशन नंदा
अभिनय: संजीव कुमार, मुमताज, जितेन्द्र, शत्रुघ्न सिंहा, जगदीप, मल्लिका
गायन: लता मंगेशकर, आशा भोसले, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, मन्ना डे
गीत: आनन्द बक्शी
संगीत: लक्ष्मीकांत प्यारेलाल

खिलौना मुमताज की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक है। इस फिल्म के लिए मुमताज ने 1970 का फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अवार्ड मिला। इस फिल्म में मुमताज ने एक पेशवर नर्तकी की भूमिका निभाई है। 

फिल्म का आरम्भ चाँद (मुमताज) के एक मुजरे से होती है, जिसमें चाँद अपने महबूब शायर विजय (संजीव कुमार) की नज्म गाती है। अपने  दर्शकों में बिहारी (शत्रुघ्न सिंहा) भी मौजूद है।

अगर दिलवर की रुसवाई हमें मंजूर हो जाए, सनम तू वेवफा के नाम से मशहूर हो जाए। 

गीत की समाप्त होने पर विजय के पिता ठाकुर सूरज सिंह कोठे में आते है। ठाकुर विजय की हालत के बारे में चाँद और उसकी माँ को बताते है कि विजय अपनी प्रेमिका की मौत के सदमे को बरदास्त नहीं कर पाया और अब उसका मानसिक संतुलन ठीक नहीं है। ठाकुर चाहते है कि चाँद विजय की देखभाल करने के लिए उसकी बीवी बनकर उनके घर पर रहे।  चाँद की माँ हीराबाई अपने ऐशो-आराम के लिए चाँद से नाच गाना तो करवाती है परन्तु अभी तक चाँद पर कोई दाग नहीं लगने दिया। लेकिन चाँद अपने महबूब शायर के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाती  है।

चाँद विजय की बीवी बनकर अपने महबूब शायर की देखभाल करने लगती है। 

एक रात को विजय अपने पर काबू नहीं रख पाता और पागलपन की हालत में चाँद का रेप कर देता है। 


अगले दिन चाँद वापस जाने का मन बना लेती है। परन्तु अब विजय को अपनी गलती का एहसास हो जाता है और वह चाँद को जाने से रोकने की कोशिश करता है। चाँद विजय के दिल को खिलौना की तरह तोड़कर वापस नहीं जा पाती।

इसी बीच विजय का छोटा भाई मोहन (जिन्तेन्द्र) कुछ दिनों के लिए घर आता है। वह चाँद की खूबसूरती पर दिल हार जाता है।



लेकिन चाँद मोहन को बताती है कि वह विजय के बच्चे की माँ बनने वाली है। मोहन निराश होकर लौट जाता है।


चाँद के प्यार, सूझबूझ और सेवा से विजय की हालत में सुधार होने लगता है। घर के सभी लोग उसे पसंद करने लगते है लेकिन विजय के बड़े भाई रमेश को चाँद एक आँख भी पसंद नही। 

विजय की हालत में सुधार होने से चाँद को अपनी हालत पर तरस आने लगता है। उसे डर लगने लगता है कि ठीक होने के बाद उसकी उसकी हालत शकुंतला की जैसी न हो जाए।

इधर बिहारी रमेश की बेटी राधा को हिरोइन बनाने का झाँसा देकर घर से भगाने की कोशिश करता है। लेकिन चाँद बिहारी की कोशिश को सफल नहीं होने देती। लेकिन ठाकुर और ठकुराइन बिहारी को पकड़ लेते है तो बिहारी उनसे कहता है वह चाँद से मिलने आया था। चाँद राधा और ठाकुर के घर की इज्जत बचाने के लिए इल्जाम कुछ कह नहीं पाती।

इसी बीच चाँद की माँ हीराबाई की तबीयत खराब हो जाती है। चाँद अपनी माँ से मिलने जाती है तो देखती है कि उसकी माँ किसी आदमी से उसके बारे में बात कर रही है। चाँद छुपकर सब सुनती है कि हीराबाई उसकी सगी माँ नहीं है। वास्तव में वह एक ब्राह्मण की बेटी है जिसे उसने एक रेल दुर्घटना के बाद चुरा लिया था और अपनी बेटी बनाकर पाला। यह सब जानकर भी चाँद अपनी हीराबाई से नाराज नहीं होती।

लेकिन राधा की परेशानी अभी खत्म नहीं हुई है। उसके कुछ प्रेम पत्र बिहारी के पास है। चाँद राधा को इस मुसीबत से बचाने के लिए बिहारी से राधा के खत वापस लेने जाती है। बिहारी राधा के प्रेम-पत्र वापस करने के लिए के लिए राजी हो जाता है लेकिन उसकी एक शर्त है। चाँद राधा के पत्र लेकर जल्दी से लौट जाना चाहती है लेकिन बिहारी उसके साथ जबर्दस्ती रोकता है। इसी बीच विजय वहाँ पहुँच जाता है। विजय से लड़ते-झगते बिहारी छत से गिरकर मर जाता है। विजय की पूर्व प्रेमिका सपना की मृत्यु भी छत से गिर कर हुई है। अब बिहारी की मौत के बाद विजय बिलकुल ठीक होता है।  लेकिन अब उसे चाँद के बारे में कुछ भी याद नहीं रहता और न ही ठाकुर के परिवार में किसी को चाँद की आवश्यकता है। 

विजय पर बिहारी की हत्या का मुकदमा चलता है। मुकदमे के दौरान विजय को बता चलता है कि चाँद के पेशवर नर्तकी है और चाँद ने उसकी कितनी सेवा की है। वह चाँद और उसके बच्चे को अपनाने के लिए तैयार है। लेकिन ठाकुर और ठकुराइन समझते है कि यह चाँद के पेट में विजय का नहीं बिहारी का बच्चा है। विजय के विरोध के बावजूद रमेश चाँद को घर से धक्के मारकर निकाल देता है। 

तभी मोहन आ जाता है और चाँद की पवित्रता का सबूत देता है कि कैसे चाँद ने राधा की इज्जत बचाने के लिए सारा इलजाम अपने सिर ले लिया था। 

लेकिन ठाकुर और ठकुराइन अब भी एक पेशवर नर्तकी को अपने घर की बहू बनाने के लिए तैयार नहीं। परन्तु जब उन्हें पता चलता है कि चाँद हीराबाई की नहीं एक ब्राह्मण की बेटी है तब अब किसी को चाँद को अपनाने में कोई समस्या नहीं।



खिलौना में मुमताज ने चाँद की सराहनीय भूमिका निभाई है। लेकिन फिल्म के अन्त में कुछ ऐसे प्रश्न है जिनके उत्तर नहीं मिलते। यह प्रश्न भारतीय हिन्दू समाज के सम्मुख उपस्थित ऐसे प्रश्न है जो आज 50 वर्ष बाद भी उतने ही महत्वपूर्व है --
  • क्या पेश्वर नर्तकी के प्यार और सेवा को मूल्य सिर्फ पैसे से ही दिया जा सकता है। उसे स्त्रियों के स्वाभाविक अधिकारों से वंचित रखना क्या सही है?
  • क्या एक स्त्री की पवित्रता का सबूत वह स्वयं नहीं है? कोई स्त्री अपनी पवित्रता साबित करने के अन्य पुरुष पर निर्भर क्यों है?
  • किसी व्यक्ति के चरित्र का फैसला उसके कर्म से होना चाहिए या फिर इस बात पर निर्भर होगा कि उसके माता-पिता कौन है?
  • अगर मोहन को भी चाँद की सच्चाई का पता नहीं होता और चाँद के पिता उसे अपनी बेटी मानने से इनकार कर देता तो क्या उसे घर से निकाल देना सही होता?