शनिवार, 11 जुलाई 2020

खिलौना (1970)

निर्देशकः चन्दर वोहरा
निर्माताः एल. वी. प्रसाद
कहानीः गुलशन नंदा
अभिनय: संजीव कुमार, मुमताज, जितेन्द्र, शत्रुघ्न सिंहा, जगदीप, मल्लिका
गायन: लता मंगेशकर, आशा भोसले, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, मन्ना डे
गीत: आनन्द बक्शी
संगीत: लक्ष्मीकांत प्यारेलाल

खिलौना मुमताज की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक है। इस फिल्म के लिए मुमताज ने 1970 का फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अवार्ड मिला। इस फिल्म में मुमताज ने एक पेशवर नर्तकी की भूमिका निभाई है। 

फिल्म का आरम्भ चाँद (मुमताज) के एक मुजरे से होती है, जिसमें चाँद अपने महबूब शायर विजय (संजीव कुमार) की नज्म गाती है। अपने  दर्शकों में बिहारी (शत्रुघ्न सिंहा) भी मौजूद है।

अगर दिलवर की रुसवाई हमें मंजूर हो जाए, सनम तू वेवफा के नाम से मशहूर हो जाए। 

गीत की समाप्त होने पर विजय के पिता ठाकुर सूरज सिंह कोठे में आते है। ठाकुर विजय की हालत के बारे में चाँद और उसकी माँ को बताते है कि विजय अपनी प्रेमिका की मौत के सदमे को बरदास्त नहीं कर पाया और अब उसका मानसिक संतुलन ठीक नहीं है। ठाकुर चाहते है कि चाँद विजय की देखभाल करने के लिए उसकी बीवी बनकर उनके घर पर रहे।  चाँद की माँ हीराबाई अपने ऐशो-आराम के लिए चाँद से नाच गाना तो करवाती है परन्तु अभी तक चाँद पर कोई दाग नहीं लगने दिया। लेकिन चाँद अपने महबूब शायर के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाती  है।

चाँद विजय की बीवी बनकर अपने महबूब शायर की देखभाल करने लगती है। 

एक रात को विजय अपने पर काबू नहीं रख पाता और पागलपन की हालत में चाँद का रेप कर देता है। 


अगले दिन चाँद वापस जाने का मन बना लेती है। परन्तु अब विजय को अपनी गलती का एहसास हो जाता है और वह चाँद को जाने से रोकने की कोशिश करता है। चाँद विजय के दिल को खिलौना की तरह तोड़कर वापस नहीं जा पाती।

इसी बीच विजय का छोटा भाई मोहन (जिन्तेन्द्र) कुछ दिनों के लिए घर आता है। वह चाँद की खूबसूरती पर दिल हार जाता है।



लेकिन चाँद मोहन को बताती है कि वह विजय के बच्चे की माँ बनने वाली है। मोहन निराश होकर लौट जाता है।


चाँद के प्यार, सूझबूझ और सेवा से विजय की हालत में सुधार होने लगता है। घर के सभी लोग उसे पसंद करने लगते है लेकिन विजय के बड़े भाई रमेश को चाँद एक आँख भी पसंद नही। 

विजय की हालत में सुधार होने से चाँद को अपनी हालत पर तरस आने लगता है। उसे डर लगने लगता है कि ठीक होने के बाद उसकी उसकी हालत शकुंतला की जैसी न हो जाए।

इधर बिहारी रमेश की बेटी राधा को हिरोइन बनाने का झाँसा देकर घर से भगाने की कोशिश करता है। लेकिन चाँद बिहारी की कोशिश को सफल नहीं होने देती। लेकिन ठाकुर और ठकुराइन बिहारी को पकड़ लेते है तो बिहारी उनसे कहता है वह चाँद से मिलने आया था। चाँद राधा और ठाकुर के घर की इज्जत बचाने के लिए इल्जाम कुछ कह नहीं पाती।

इसी बीच चाँद की माँ हीराबाई की तबीयत खराब हो जाती है। चाँद अपनी माँ से मिलने जाती है तो देखती है कि उसकी माँ किसी आदमी से उसके बारे में बात कर रही है। चाँद छुपकर सब सुनती है कि हीराबाई उसकी सगी माँ नहीं है। वास्तव में वह एक ब्राह्मण की बेटी है जिसे उसने एक रेल दुर्घटना के बाद चुरा लिया था और अपनी बेटी बनाकर पाला। यह सब जानकर भी चाँद अपनी हीराबाई से नाराज नहीं होती।

लेकिन राधा की परेशानी अभी खत्म नहीं हुई है। उसके कुछ प्रेम पत्र बिहारी के पास है। चाँद राधा को इस मुसीबत से बचाने के लिए बिहारी से राधा के खत वापस लेने जाती है। बिहारी राधा के प्रेम-पत्र वापस करने के लिए के लिए राजी हो जाता है लेकिन उसकी एक शर्त है। चाँद राधा के पत्र लेकर जल्दी से लौट जाना चाहती है लेकिन बिहारी उसके साथ जबर्दस्ती रोकता है। इसी बीच विजय वहाँ पहुँच जाता है। विजय से लड़ते-झगते बिहारी छत से गिरकर मर जाता है। विजय की पूर्व प्रेमिका सपना की मृत्यु भी छत से गिर कर हुई है। अब बिहारी की मौत के बाद विजय बिलकुल ठीक होता है।  लेकिन अब उसे चाँद के बारे में कुछ भी याद नहीं रहता और न ही ठाकुर के परिवार में किसी को चाँद की आवश्यकता है। 

विजय पर बिहारी की हत्या का मुकदमा चलता है। मुकदमे के दौरान विजय को बता चलता है कि चाँद के पेशवर नर्तकी है और चाँद ने उसकी कितनी सेवा की है। वह चाँद और उसके बच्चे को अपनाने के लिए तैयार है। लेकिन ठाकुर और ठकुराइन समझते है कि यह चाँद के पेट में विजय का नहीं बिहारी का बच्चा है। विजय के विरोध के बावजूद रमेश चाँद को घर से धक्के मारकर निकाल देता है। 

तभी मोहन आ जाता है और चाँद की पवित्रता का सबूत देता है कि कैसे चाँद ने राधा की इज्जत बचाने के लिए सारा इलजाम अपने सिर ले लिया था। 

लेकिन ठाकुर और ठकुराइन अब भी एक पेशवर नर्तकी को अपने घर की बहू बनाने के लिए तैयार नहीं। परन्तु जब उन्हें पता चलता है कि चाँद हीराबाई की नहीं एक ब्राह्मण की बेटी है तब अब किसी को चाँद को अपनाने में कोई समस्या नहीं।



खिलौना में मुमताज ने चाँद की सराहनीय भूमिका निभाई है। लेकिन फिल्म के अन्त में कुछ ऐसे प्रश्न है जिनके उत्तर नहीं मिलते। यह प्रश्न भारतीय हिन्दू समाज के सम्मुख उपस्थित ऐसे प्रश्न है जो आज 50 वर्ष बाद भी उतने ही महत्वपूर्व है --
  • क्या पेश्वर नर्तकी के प्यार और सेवा को मूल्य सिर्फ पैसे से ही दिया जा सकता है। उसे स्त्रियों के स्वाभाविक अधिकारों से वंचित रखना क्या सही है?
  • क्या एक स्त्री की पवित्रता का सबूत वह स्वयं नहीं है? कोई स्त्री अपनी पवित्रता साबित करने के अन्य पुरुष पर निर्भर क्यों है?
  • किसी व्यक्ति के चरित्र का फैसला उसके कर्म से होना चाहिए या फिर इस बात पर निर्भर होगा कि उसके माता-पिता कौन है?
  • अगर मोहन को भी चाँद की सच्चाई का पता नहीं होता और चाँद के पिता उसे अपनी बेटी मानने से इनकार कर देता तो क्या उसे घर से निकाल देना सही होता?







 

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