सोमवार, 7 सितंबर 2020

बन्धन (1969)


निर्देशन: नरेन्द्र बेदी
निर्माता: जी. पी. सिप्पी, रमेश सिप्पी
कहानीः नरेन्द्र बेदी
अभिनय
: राजेश खन्ना, मुमताज, संजीव कुमार
गायन: आशा भोसले, मुकेश, महेन्द्र कपूर
गीत: इन्दीवर, अनजान
संगीत
: कल्याणजी आनन्दजी
श्रेणीःरोमांस, गीत-संगीत

बन्धन


बन्धन में मुमताज का रोल दो रास्ते से बिल्कुल उल्टा है। राजेश और मुमताज एक दूसरे के पड़ोसी तो नहीं है लेकिन एक ही गाँव में रहते है। बचपन से दोनों में रोज लड़ाई-झगड़ा होता रहता है।


मुमताज राजेश को लड़ाई करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ती।


और राजेश उससे भद्दे मजाक करता है। और दोनों की लड़ाई चलती रहती है।


लेकिन मुमताज के मन में राजेश के लिए प्रेम भी है।


और धीरे-धीरे लड़ाई-झगड़ा प्रेम में बदल जाता है।


लेकिन मुमताज के अमीर पिता कन्हैयालाल को यह कभी मंजूर नहीं कि उसकी बेटी की शादी चोर और एय्याश जीवन के घर में हो।


वह कहता है कि अगर मुमताज राजेश से शादी के लिए इनकार नहीं करेगी तो वह उसके खेत और मकान नीलाम करवा देगा। मजबूर होकर मुमताज राजेश से शादी के लिए इनकार कर देती है।


इधर राजेश का अपने पिता से झगड़ा हो जाता है और वह गाँव छोड़कर शहर चला जाता है।
 

 लेकिन मुमताज को राजेश का इन्तजार है। वह अपनी मजबूरी डा. अंजू से कहती है।


एक दिन राजेश अचानक गाँव लौट आता है और अपने पिता जीवन की हत्या कर देता है।


राजेश पर मुकदमा चलता है और वह अपना अपराध स्वीकार कर लेता है। लेकिन अंजु अपने भाई संजीव को राजेश का मुकदमा लड़ने के लिए राजी कर लेती है।


संजीव राजेश को बचाने के लिए यह साबित करना चाहता है कि जीवन की हत्या राजेश ने नहीं बल्कि मुमताज ने की है क्योंकि जीवन की वजह से ही उसकी शादी राजेश से नहीं हो सकी।
 

आखिर सच्चाई सामने आती है। राजेश बताता है कि जिस दिन वह गाँव लौटा उस दिन मुमताज उसके घर आई थी। उसे अकेले देकर जीवन ने उसका रेप करने की कोशिश की। जब उसने अपने पिता को रोका वह उससे भी लड़ने लगा और खुद ही कुल्हारी पर गिर पड़ा।
 

मरते समय जीवन माफी माँगता है और कहता है कि मैं नहीं जानता था कि मालिकराम की बेटी तुझसे प्यार करती है और एक दिन इस घर की बहू...। अपनी माँ से मेरा ये पाप न कहना। उसने सब कुछ सहा है लेकिन यह सहन नहीं कर सकेगी।
 

 लेकिन जो बात गाँव का बच्चा-बच्चा जानता है, वह जीवन को नहीं पता था। ऐसा फिल्मों में ही हो सकता है। बेचारी मुमताज...


खैर, अन्त भले का भला...


बन्धन समाप्त।

प्रेम कहानी (1975)

निर्देशन: राज खोसला
निर्माताः लेखराज खोसला, भोलू खोलसा
कहानीः राज खोसला
अभिनय: राजेश खन्ना, मुमताज, शशी कपूर, विनोद खन्ना, लीला मिश्रा, यूनुस परवेज, के. एन. सिंह, त्रिलोक कपूर 
गायन: लता मंगेश्कर, मोहम्मद रफी, मुकेश, किशोर कुमार
गीत: आनन्द बक्शी
संगीत: लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल
श्रेणीः रोमांस, गीत-संगीत

प्रेम कहानी एक प्रेम कहानी जैसी अधिकतर प्रेम कहानी होती है। मतलब पास-पड़ोस में रहने वाले दो लड़का-लड़की आपस में प्रेम करते है। पर किसी कारणवश उनकी शादी नहीं हो पाती और लड़की की शादी किसी तीसरे से हो जाती है। परन्तु इस प्रेम कहानी में एक मोड़ आता है -- लड़का वापस लड़की की जिन्दगी में आ जाता है। अब लड़की किसे चुनेगी - अपने पति को या अपने प्रेम को? मुमताज ने इस दुविधा को बड़ी सरलता से और बेबाक तरीके से प्रस्तुत किया है।


प्रेम कहानी


जैसा कि हर प्रेम कहानी में होता है। इस प्रेम कहानी में भी एक लड़का होता है। एक लड़की होती है। कभी दोनों हँसते है। 
 

कभी दोनों रोते है।


यहाँ तक कि एक शादी में दोनों लगभग शादी कर ही लेते है।


परन्तु मुमताज के पिता राजेश से उसकी शादी के खिलाफ है। इस पर मुमताज कहती है कि अगर आप राजेश के साथ मेरी शादी करके मुझे बिदा नहीं करेंगे तो मैं खुद चली जाऊँगी।


यह सुनकर मिस्टर सिंहा मिसेज सिंहा से कहते है -- अगर राजेश से शादी करनी है तो अपना पैगाम खुद लेकर जाए।

मुमताज राजेश के पास जाती है लेकिन राजेश शादी करने से इनकार कर देता है। 


राजेश -- शादी के बाद तो हर चीज फीकी पड़ जाती है। मैं एक शायर हूँ और मैं अपनी शायरी के गले में तुम्हारे पाँव की फाँसी नहीं डाल सकता। याद है उस रात मैंने कहा था, शादी इश्क का सारा रोमांस ही चौपट कर देती है।
मुमताज  -- उस रात तुमने ये भी तो कहा था, मेरे हाथ-पाँव में मेंहदी लगवाओगे।
राजेश -- कहा था। पर तुम भूल रही हो वो सब आशिकी की बातें थी -- शादी की नहीं।
मुमताज -- बहुत अच्छे! तुम समझते हो अगर तुम मुझसे शादी नहीं करोगे तो क्या मैं जिंदगी भर क्वाँरी रह जाऊँगी। मेरी शादी होगी और किसी शरीफ आदमी से होगी। और तुम सारी जिंदगी पश्चताते रहोगे।


मुमताज -- हैरान हूँ, तुम्हें इतने बरसों में पहचान न सकी। मगर फिर भी तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया। अच्छे वक्त पर बता दिया कि तुम कितने गिरे हुए आदमी हो।


मिसेज सिंहा -- राजेश से झगड़ा हो गया है क्या?
मुमताज -- झगड़ा नहीं छुटकारा हो गया है। मैं किसी शायर के गले की फाँसी नहीं बनना चाहती। डैडी से कह दीजिए, जहाँ मेरी शादी करवाना चाहते है करवा सकते है।
मिसेज सिंहा -- डैडी ने जो लड़का पसन्द किया है, कहो तो तस्वीर दिखा दूँ।
मुमताज  -- मैंने जीता-जागता इनसान पसन्द किया था। जब उसे न पहचान सकी तो अब तस्वीर देखकर क्या करूँगी।

मुमताज की शादी हो जाती है।


और पहली रात को ही घायल राजेश भी वहाँ आ पहुँचता है। वह शशी का दोस्त है।  अब दोनों पति-पत्नी राजेश के देखभाल में लग जाते है।


मुमताज अपनी इस अजीब हालत का ब्यान इस प्रकार करती है --


शर्म आती है मुझको सहेली
नया घर है मैं दुल्हन नवेली
बात मन की जो है एक पहेली
रहने दो इसे तुम पहेली
क्या मेरी प्रेम कहानी
नदिया से बिछड़ा पानी...

छूट जाती है बाबुल की गालिया
दूर संजोग ले जाते है
फूल बनती है जब खिलके कालिया
तोड़ के लोग ले जाते है
एक राजा ले आया बनके मुझे रानी
नदिया से बिछड़ा पानी...

एक दिन शशी को पता चल जाता है कि राजेश और मुमताज एक-दूसरे के पड़ोसी है और पहले से ही एक दूसरे को जानते है। 
 
वह राजेश से पूछता है -- क्या हुआ उस लड़की का, जिसे तूने धोखा दिया।
राजेश -- उनकी गली से कम तो नहीं है वतन की राह। मरने की बात आई तो हम उस तरफ चले गए।
शशी -- मगर वतन से वफादारी की ये शर्त कब निकल आई कि आदमी अपने प्यार से गद्दारी करे। क्या कभी उस लड़की ने ये कहा कि आजादी की लड़ाई में हिस्सा न ले।
मुमताज -- उस लड़की का क्या हुआ राजेश साहब? 
राजेश -- उसकी शादी हो गई।
मुमताज -- क्या वो अपनी शादी से खुश है?
राजेश -- पता नहीं।
शशी -- उसके खुश होने का सवाल ही पैदा नहीं होता, साहब। हिन्दुस्तानी लड़की जब प्यार करती है तब उसे जिन्दगी भर निभाती है।
मुमताज -- नहीं, जब हिन्दुस्तानी लड़की शादी करती है तब उसे जिन्दगी भर निभाती है। राजेश साहब, आपको उस लड़की से सच बोलना चाहिए था। मुमकिन है किसी की बीवी बनकर जीने के बजाये, आपकी बेवा बनकर जीना वो ज्यादा पसन्द करती।

रेडियो पर नूरजहाँ का गाया हुआ एक पुराना गाना बज रहा है --


कुछ भी न कहा, और कह भी गए।
कुछ कहते कहते रह भी गए।

बातें जो जबाँ तक आ न सकी
आँखो ने कही, आँखो ने सुनी
कुछ होटों पर, कुछ आँखों में
अनकहे फसाने रह भी गए
कुछ भी न कहा, और कह भी गए।

शशी को अभी तक नहीं पता है कि मुमताज ही राजेश की प्रेमिका है। बारिश का मौसम है। वह राजेश का मन बहलाने के लिए उसे मुमताज के साथ जबरदस्ती बाहर भेज देता है।


और अंत में शशी को मुमताज और राजेश की प्रेम कहानी का पता चल जाता है।  बात-बात में पिस्तौल निकल आती है और मुमताज अपने पति को बचाने के लिए राजेश को गोली मार देती है।


शशी का वहम दूर करने का बस यही एक तरीका था?


और इस प्रकार प्रेम पर कर्तव्य की विजय के साथ ही प्रेम कहानी का अन्त होता है। एक बार भी प्रेम हार गया।







रविवार, 6 सितंबर 2020

दो रास्ते (1969)

निर्देशन: राज खोसला
निर्माताः लेखराज खोसला
कहानीः चन्द्रकान्त ककोड़कर
अभिनय: बलराज साहनी, कामिनी कौशल, राजेश खन्ना, मुमताज, प्रेम चोपड़ा, बिन्दु, वीना, असित सेन, लीला मिश्रा, जयन्त, मोहन चोटी, महमूद जूनियर, 
गायन: लता मंगेश्कर, मोहम्मद रफी, मुकेश, किशोर कुमार
गीत: आनन्द बक्शी
संगीत: लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल
श्रेणीः पारिवारिक, रोमांस, गीत-संगीत

दो रास्ते राजेश खन्ना और मुमताज की पहली सुपर हिट  फिल्म है। इसके बाद राजेश खन्ना और मुमताज ने एक के एक सुपर हिट फिल्मे की।

यह फिल्म तीन भाइयों की कहानी है। सबसे बड़ा भाई बलराज के पिता ने मरते समय बलराज के पास एक सौतेली माँ, दो सौतेले भाई और एक सौतेली बहन और मकान छोड़ा था। बलराज ने अपने सौतले भाइयों को कर्ज के लेकर पढ़ाया। लेकिन प्रेम शादी के बाद अलग हो जाता है और पढ़ाई के लिया हुआ कर्ज चुकाने से मना कर देता है। कर्ज न चुका पाने के कारण पुश्तैनी मकान नीलाम हो जाता है।   


गीतों भरी कहानी


इस फिल्म में मुमताज और राजेश खन्ना पर फिल्माए गए सभी गीत बहुत लोकप्रिय है और फिल्म के मुख्य आकर्षण है। फिल्म की कहानी गीतों के सहारे आगे बढ़ती है। फिल्म का आरम्भ राजेश और मुमताज की नोंकझोक से होती है और पहला गाना कॉलेज पिकनिक में जहाँ राजेश खन्ना ने अपने दोस्तों के साथ मुमताज को पटाने की शर्त लगाई है...

ये रेश्मी जुल्फे


लेकिन जल्दी ही यह शरारत प्यार में बदल जाती है और ...

छुप गए सारे नजारे


और फिर मुमराज की बारी आती है राजेश को सताने की...

बिन्दिया चमकेगी



अंत में 

मेरे नसीब में ऐ दोस्त


मुमताज ने कई एक्शन फिल्मों में काम किया है लेकिन इस फिल्म में मुमराज ने रोमांस के सिवा कुछ नहीं किया है। जब उसकी माँ अपनी बड़ी बेटी बिन्दु के घर में आग लगाने की योजना बना रही है, तब मुमराज अपने पिता के साथ शतरंज खेल रही है।


और जब राजेश अपने भाई प्रेम और भाभी बिन्दु से लड़कर हस्पताल में बेहोश पड़ा है, तब भी मुमराज ने कुछ नहीं बोलती।


फिल्म में क्या बोलना है और क्या करना है, यह सब निर्देशक के हाथ में ही है। इसलिए इसके लिए मुमराज को  दोष देना उचित नहीं है। 


1 अ मिनट (2010)

स्तन कैंसर से दुनिया भर में हर एक मिनट में एक महिला की मृत्यु हो जाती है।

1 अ मिनट नम्रता सिंह गुजराल द्वारा लिखित और निर्देशित एक डॉक्यूमेंट्री-ड्रामा है जिसमें वह स्तन कैसर से पीड़ित अनेक महिलाओं के साथ अपने निजी अनुभव का वर्णन करती है।

केली मैकगिल्लिस द्वारा कही गई इस फिल्म में दीपक चोपड़ा, डेनिस स्लामन, नैंसी ब्रिंकर के साथ अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों के साक्षात्कार सम्मिलित है जिनको प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्तन कैंसर के झूझना पड़ा। इनमें ओल्विया न्यूटन-जॉन, नम्रता सिंह गुजराल, जैक्लीन स्मिथ, मेलिसा इथरिज, बारबरा मोरी, लिसा रे, डायहन कैरोल, विलियम बाल्डविन, डैनियन बाल्डविन, मुमताज, जैसमीन सिंह कूपर और प्रिया दत्त भी शामिल है।

1 अ मिनट की डी.वी.डी यूनिग्लोब एंटरटेंमेंट की वेबसाइट और एमेजन पर उपलब्ध है।

1 अ मिनट का टैलर यूट्यूब पर उपलब्ध है।



1 अ मिनट में मुमताज


इरानी में कहते है कि कुरान में अल्लाह ने कहा है कि तुम कोशिश करो और मैं उसे पूरा करुँगा। और मैं हमेशा कहती थी, अल्लाह मुझे कभी कोई कष्ट मत देना।

मेरा नाम मुमताज है। मेरे माता-पिता शिराज, ईरान से भारत आकर बम्बई में बस गए। बम्बई में मेरा जन्म हुआ और मैं यहीं पली-बढ़ी।

मेरी मनपसंद फिल्में है - खिलौना, आईना, आप की कसम, तेरे मेरे सपने और हरे रामा हरे कृष्णा। एक साथ तीन सिल्वर जुबली फिल्में। अब ऐसा नहीं होता। आजकल तो एक फिल्म हिट होने पर ही लोग शोर मचाने लगते है।

मैंने सब कुछ देखा है। सफलता को मैने बहुत करीब से देखा है।

और जैसा सब औरतें सोचती है, मैं भी वैसा ही सोचती थी -- मुझे स्तन कैंसर नहीं हो सकता। मैं अपने शरीर को लेकर बहुत संवेदनशील हूँ। और जब मुझे गाँठ के बारे में बता चला तो मैंने कहा -- डॉक्टर, मैं इसे निकलवाना चाहती हूँ। पर डॉक्टर ने कहा, घबराने की बात नहीं, मामूली-सी गाँठ है।

मैंने कहा -- नहीं, इसे निकाल दीजिए। 

फिर मैं यह सुनकर चकित रह गई कि मुमताज तुम्हें स्तन कैंसर है। जबकि मैमोग्राफी में कुछ भी नहीं था।

मुझे मुसलमान की तरह पाला-पोसा गया था। कुछ मुस्लिम देशों में ऐसा माना जाता है कि महिलाओं को अपने कपड़े नहीं उतारने चाहिए और मैमोग्राफी नहीं करवानी चाहिए। लेकिन यह सोच बिल्कुल गलत है। क्योंकि बिना जाँच किए कैसे पता चलेगा कि कैंसर है या नहीं।

जब मैं कीमो के लिए जाती थी तब मेरी बेटियाँ बहुत रोती थी। मेरे पति भी रोते थे।  सब लोग मेरा बहुत ख्याल रखते थे। हमेशा मेरी देखभाल करते थे। कीमो के बाद कुछ भी खाने का मन नहीं होता। मुझे जबरदस्ती खानाा खिलाते।  भाग-भागकर मेरी पसन्द की चीजें लाते।


सबकी जिन्दगी में परेशानियाँ होती है। दुनिया में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसे कोई परेशानी नहीं हो। कैंसर से सबको डर लगता है। पहले तो मुझे ऐसा लगा कि जैसे किसी ने मेरे ऊपर बर्फिला पानी डाल दिया हो - मैं ऐसी ठंडी हो गई थी।

कैंसर के मुख्य कारण

(कैंसर के मुख्य कारणों में प्रदूषित वातावरण, गर्भ का स्वतः गिरना और मानसिक तनाव है।)

चार बार मेरा गर्भ गिर गिर गया। एक बार एक्टोपिक गर्भ हुआ।

मेरे पति को यह सुनकर अच्छा तो नहीं लगेगा पर हमारी शादी के 13-14 वर्ष के बाद मुझे पता चला कि उनकी जिन्दगी में कोई दूसरी औरत भी है। और इस बात से मुझे अत्याधिक मानसिक कष्ट हुआ। लेकिन हर किसी को कभी न कभी हकीकत से सामना करना ही पड़ता है।


मेरे बाल बहुत लम्बे थे और सारे झड़ गए। मेरी बेटी कहती थी -- माँ आपके बाल वापस आ जाएगे। और वो वापस भी आ गए। ये मेरे असली बाल है -- कुछ लगाया नहीं है।

सभी स्त्रियाँ जानती है कि गर्भावस्था कितनी दुखदायी होती है। लेकिन मेरा कहना है कि कैंसर की बीमारी गर्भावस्था से लाख गुना दुखदायी है। और अगर आपका खून ठीक नहीं है यह उसमे सफेद रक्त कोशिकाओं की कमी है तो कीमो से आप मर भी सकते है। 

कीमो से मेरा थायोराइड नष्ट हो गया। लीवर ने काम करना बन्द कर दिया। मैं बस मरने ही वाली थी।

यह कोई नहीं कह सकता कि एक बार ठीक होने के बाद कैंसर दुबारा होगा या नहीं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सिर्फ इसी बात की चिंता करते-करते अपने जिन्दगी और अपना भविष्य बरबाद कर लो।

हमेशा अच्छा सोचो। एक दिन सबको मरना है। इसलिए इन बातों को परमात्मा पर छोड़ दो। मुसलमान मानते है कि सबकी मौत पहले से ही तय है। इसलिए जरुरतमंदों की मदद करो, दान करो और पुण्य कमाओ।